मनोज पांडेय की बगावत से UP में SP के साथ ही Congress के भी समीकरण बिगड़ गये

मनोज पांडेय की बगावत से UP में SP के साथ ही Congress के भी समीकरण बिगड़ गये

समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा, दलित अल्पसंख्यक) प्रेम में जब बनिया, ब्राह्मणों, क्षत्रियों, कायस्थों और यहां तक की राम भक्तों का कोई महत्व या स्थान ही नहीं है तो वह समाजवादी पार्टी के लिए क्यों वोट करेंगे? उक्त बिरादरी के नेता भी क्यों समाजवादी पार्टी में रहना पसंद करेंगे? राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के जिन विधायकों ने बगावत की उसमें से 5-6 नेता ऐसे हैं जिनकी समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से बस यही नाराजगी थी कि वह उनकी बिरादरियों की अनदेखी कर रहे हैं और उनके इष्ट प्रभु श्रीराम का सम्मान नहीं करते हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने स्वभाव में बदलाव नहीं किया तो इसका खामियाजा उन्हें लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव के समय भी पार्टी में बगावत के सुर फुट सकते हैं। फिर इसकी आंच से ना सपा बचेगी ना कांग्रेस। सपा कांग्रेस की इसी सियासत के चलते रायबरेली में गांधी परिवार का गढ़ संकट में नजर आ रहा है।

रायबरेली के ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक डॉ. मनोज कुमार पांडेय के विधानमंडल के मुख्य सचेतक पद से त्यागपत्र देने के बाद रायबरेली की राजनीतिक सरगर्मी एक बारगी बढ़ गई है। मनोज के इस फैसले के बाद गांधी परिवार के गढ़ की न सिर्फ सियासत बदलेगी, बल्कि आने वाले समय में नए समीकरण भी बनेंगे। राहुल गांधी के लिए ये सियासी बदलाव इसलिए मायने रखता है क्योंकि उनके अमेठी से चुनाव लड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। केरल के वायनॉड संसदीय क्षेत्र में राहुल गांधी के खिलाफ जिस तरह से वहां सत्तारुढ़ वामपंथी पार्टी ने मजबूत घेराबंदी की है, उसके चलते राहुल के वहां से जीतने की संभावनाएं बहुत अच्छी नहीं दिख रही हैं। ऐसा तब हुआ जबकि वामपंथी कांग्रेस के साथ इंडी गठबंधन में शामिल हैं।

सपा से बगावत करके बीजेपी में शामिल होने वाले मनोज की छवि कद्दावर ब्राह्मण नेता की है। यही वजह है कि वह सपा में भी पूरे प्रभाव के साथ डटे रहे। ऐसे में वह जिस दल में शामिल होंगे, उसे आगामी लोकसभा चुनाव में भरपूर फायदा मिलेगा। वैसे तो प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान ही सियासी गलियों में इस बात की चर्चा थी कि मनोज कुमार पांडेय कोई नया राजनीतिक फैसला लेने वाले हैं, लेकिन उस समय यह कयास उल्टा पड़ा। मनोज ने सपा से ही विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल करते हुए हैट्रिक भी लगाई। सपा ने मनोज का ओहदा ऊंचा करते हुए उन्हें विधानमंडल का मुख्य सचेतक नियुक्त किया था। लोकसभा चुनाव से पहले ही मनोज ने सपा को झटका देते हुए मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा देकर राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग भी की।

इस्तीफे के बाद मनोज के भाजपा में जाने की अटकल लगाई जा रही हैं। बहरहाल मनोज चाहे जिस दल में जाएं, लेकिन इसका फर्क रायबरेली-अमेठी की सियासत में पड़ना तय है। वजह रायबरेली और अमेठी में ब्राह्मण वोटरों की अच्छी संख्या है। यहाँ ब्राह्मण वोटर निर्याणक भूमिका में हैं। मनोज की ब्राह्मण ही नहीं, बल्कि अन्य समाज के वोटरों में भी पैठ मानी जाती है। यही वजह रही कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी थी, लेकिन वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता होंगे मनोज

अमेठी का किला फतह करने के बाद इस बार रायबरेली की बारी है। यह जुमला पिछले पांच साल से भाजपा नेताओं की जुबां पर है। रायबरेली की सीट जीतना भाजपा का 2014 से मिशन रहा, लेकिन पार्टी इसमें कामयाब नहीं हो पाई। वर्ष 2019 में अमेठी से राहुल गांधी की हार के बाद भाजपाइयों के हौसले बुलंद हैं। उन्हें लगता है कि 2024 में रायबरेली संसदीय क्षेत्र में भगवा लहराएगा। यही वजह रही कि मनोज पांडेय को साधने में भाजपा लगातार जुटी थी, जिसमें उसे अब कामयाबी मिली है। मनोज पांडेय को बीजेपी लोकसभा का चुनाव भी रायबरेली से लड़ा सकती है।

सांसद सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा जाने के बाद रायबरेली सीट से गांधी परिवार के चुनाव लड़ने पर संशय बरकरार है। भले ही कांग्रेस हाईकमान हो या फिर जिले के पदाधिकारी, खुलकर कोई बात नहीं कर पा रहा। आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार पर सभी मौन साधे हैं। कुछ यही हालत भाजपा की भी है। वैसे तो कई नेता चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं, लेकिन भाजपा को ऐसा उम्मीदवार चाहिए जो अमेठी की तरह रायबरेली में भी परचम लहरा सके। वर्ष 2019 में भाजपा ने मौजूदा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा था, लेकिन वह जीत हासिल नहीं कर पाए थे। इस बार किसी कद्दावर नेता की भाजपा को तलाश है। मनोज के रूप में पार्टी की यह तलाश भी पूरी हो सकती है, इसके लिए मनोज तैयार भी नजर आते हैं।

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